गुरुवार, 20 सितंबर 2012





बस साथ मेरे साया
मेरा साथ देने आया.

नाउम्मीदी-ए-विसाल
बला का मलाल लाया

भीगी हुई इस शब् में
सैलाब-ए-अश्क आया

उसकी चाहत में मैंने
रंज-ओ-गम बेहिसाब पाया

रास्ते के हर पत्थर को
मैंने अपना खुदा बनाया

जुनूं-ए-वफ़ा,तर्क-ए-मुहब्बत
हमने भी ये धोखा खाया

आंखे नम हो गयी ये तब-तब
करार दिल ने जब-जब पाया

उसका भी अब क्या कोई होगा
अपनों ने जिसे किया पराया

...वन्दना...

5 टिप्‍पणियां:


  1. रास्ते के हर पत्थर को
    मैंने अपना खुदा बनाया


    जुनूं-ए-वफ़ा,तर्क-ए-मुहब्बत
    हमने भी ये धोखा खाया

    आंखे नम हो गयी ये तब-तब
    करार दिल ने जब-जब पाया

    उसका भी अब क्या कोई होगा
    अपनों ने जिसे किया

    ye sher mujhe behad pasand aaye... :)

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  2. छोटी बहर पर बहुत प्यारी ग़ज़ल रची है आपने बहुत पसंद आई बधाई आपको

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  3. :)...
    mujhe to Vandana ki ek sabse badi khubhi ye dikhti hai...
    ye shabdo ko bikherti nahi....jitna kam se kam shabd use kar ske ...wo ye chahti hai:)
    mera saya bhi mere saath:))

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  4. .


    रास्ते के हर पत्थर को
    मैंने अपना ख़ुदा बनाया

    जुनूं-ए-वफ़ा , तर्क-ए-मुहब्बत
    हमने भी ये धोखा खाया

    मन की कोमल भावनाओं के कारण कितनों को इन्हीं अनुभवों से गुज़रना पड़ा है …
    :(
    ग़ज़ल तो नहीं कहूंगा… बहरहाल अच्छी भावाभिव्यक्ति के लिए बधाई !

    आपके ब्लॉग पर कई रचनाएं अभी देखी हैं … आपके प्रभावी काव्य-लेखन के लिए साधुवाद !

    शुभकामनाओं सहित…

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आपकी प्रतिक्रिया निश्चित रूप से प्रेरणा प्रसाद :)