मंगलवार, 15 जनवरी 2013






बदगुमानी में जिया तो जी भी लिया..
शौक-ऐ-यकीं के शरारों से जला जिया...


तल्खी-ऐ-जीस्त  से बिगड़ा मिजाज़े आशिकी...
अक्स-ऐ-गम-ऐ-यार ने ग़मगीन किया...


मेरे मशगले कभी न किसी को रास आ सके
मैंने हर ताल्लुक बात से नहीं जज़्बात से जिया


पुर्सिश ऐ मुहब्बत में परस्तिश के एहतराम 
अहद-ए-वफ़ा भी ख्वाहिशों में नहीं 'दुआ' में जिया


....वन्दना....


शब्द अर्थ 
बदगुमानी = बुरी शंकाएं या मान्यताएं  ,  शौक-ऐ-यकीं= भरोसा करने का शौक  शरारों = चिन्गारीयों 
तल्खी-ऐ-जीस्त=ज़िन्दगी के कडवी हकीकतें 
 मिजाज़े आशिकी =प्रेम पूर्ण स्वभाव 
अक्स-ऐ-गम-ऐ-यार=प्रियजनों के जीवन की मुश्किलों की छाया , ग़मगीन = दुखी 
 मशगले=तौर तरीके /पुर्सिश= हालचाल लेना /  परस्तिश=पूजा /   एहतराम =सम्मान 

1 टिप्पणी:

आपकी प्रतिक्रिया निश्चित रूप से प्रेरणा प्रसाद :)