मंगलवार, 13 मई 2014

ममता नाद !








मातृ दिवस से परे … 


आज मेरा नमन ममत्व के उन इंद्रधनुषी रंगों को जो अंतःस्थल के 

अभावों को रंग कर जीवंत कर देते हैं प्रकृति का अधूरापन !

जिनकी कल्पनाओं में कसकती है वात्सल्य रस की सकुचाई सी जलधार 

जिससे खिल उठते हैं जाने कितने ही शुष्क मुरझाये पुष्पहार !


संतप्त सजल नेह नयन

अनछुआ ममतामय सपन


उर के दग्ध दीर्घ उच्छ्वास 

पीड़ा का मधुमय रुंधा हास


कंटक कठोर जुग की रीत

रही अकिंचन वात्सल्य प्रीत


झरते हरसिंगार से झर झर

सपन पनीले दुसाध्य दुष्कर


हा ! टूट पड़ो भू पर अम्बर

क्यूँ रही धरा शोषित बंजर


प्रकृति प्रदत्त नारी का अधिकार

परम पुनीत वात्सल्य अविकार 


सकुचाये क्यूँ ईश्वरीय उपहार 

उर में छुपाये दारुण झंकार 


अबोली माँ का हर्ष विषाद 

सजल नयन में ममता नाद !

12 टिप्‍पणियां:

  1. kitna laybadh sochte ho heart touching as always... bahut utkrisht kikh h bilkul doob kr ! charan sparsh !

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  2. Jis prakar srishti ki sampuranta 'naad' mey basi hoti hey theek usi prakar Sneh ki sampuranta hoti hey 'mamta' mey ............... sabdon ki mala piro 'mamta' shabd ko SARTHAKTA dey dali ...................... mujhey garv hey didi apki bhavnatmak-kshamta par.

    Apko mera Sadar Pranaam Vandana Didi _/\_

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  3. सजल नयन में ममता नाद !
    वाह , बहुत बढ़िया !!

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  4. अंतस को छूता हुआ ... प्रकृति से स्पंदन से उठा शब्द परिचय माँ से आगे कहाँ ...

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  5. सुन्दर रचना और उम्दा प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...मुझे आप के ब्लॉग का नाम बहुत अलग और अच्छा लगा...
    नयी पोस्ट@आप की जब थी जरुरत आपने धोखा दिया (नई ऑडियो रिकार्डिंग)

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  6. , आपकी यह ममता नाद कविता वैसे तो पूरी ही अनुप्रास मय है लेकिन संतप्त सजल, नेह नयन, दग्ध दीर्घ, कंटक कठोर, दुसाध्य दुष्कर ,प्रकृति प्रदत्त, परम पुनीत में छेकानुप्रासा के प्रयोग कविता के कलापक्ष में अभिवृद्धि कर दी है| ‘ दुसाध्य दुष्कर / सुन्दर’ में सुन्दर शब्द अनावश्यक लग रहा है इसे न ही लिखें तो अच्छा है आप संगीत में रुचि रखतीं है इस कारण आपकी कविता में लय आ जाती है परन्तु फिर भी यदि आप कुछ नियमों की ओर ध्यान दें तो आप साहित्य जगत में बहुत आगे तक जा सकती हैं | झर-झर में में भी पुनरुक्ति अलंकार आपकी कविता को अलंकृत कर रहा है |

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  7. आपके पास शब्दो की थाती है, और यही आपके रचनाओं मे झलक जाती है ......... :) क्या खूब लिखते हो !!

    झरते हारसिंगार से झर झर :)

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  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  9. Wo peeda jo tumne bhogi hi nahin tum use itne marmik tareeke se kese kah gayin vandana.... Mujhe ashchary hota hai beta tumhari sochne aur mahsus karne ki kshamta par... mano ek esi maa swyam apni vedana ke saath tumme jivant ho uthi ho... aur maa sharda ne swyam tumhe chun chun kar shabd die ho... is rachna ke baad bhi yahi kahogi ki likhna nahin jaanti..?

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  10. Wo peeda jo tumne bhogi hi nahin tum use itne marmik tareeke se kese kah gayin vandana.... Mujhe ashchary hota hai beta tumhari sochne aur mahsus karne ki kshamta par... mano ek esi maa swyam apni vedana ke saath tumme jivant ho uthi ho... aur maa sharda ne swyam tumhe chun chun kar shabd die ho... is rachna ke baad bhi yahi kahogi ki likhna nahin jaanti..?

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आपकी प्रतिक्रिया निश्चित रूप से प्रेरणा प्रसाद :)